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Friday, September 7, 2018

NOW HOMOSEXUAL NOT A CRIME IN INDIA (समलैंगिकता अब अपराध नहीं )

NOW HOMOSEXUAL NOT A CRIME IN INDIA ( समलैंगिकता अब अपराध नहीं )

  1. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 का अपना ही फैसला पलटा 
  2. 157 साल बाद धारा-377 का एक हिस्सा निरस्त 
  3. बच्चों और पशुओं से यौनाचार अपराध बना रहेगा 

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की 158 साल का पुराना धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही आपसी सहमति से दो बालिगों के बिच समलैंगिक संबंध बनाना अब अपराध नहीं होगा हालाँकि, बच्चों और पशुओ  यौन सम्बन्ध बनाना पूर्व की तरह अपराध की श्रेणी में बना रहे
     मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा अध्यक्षता वाली वाली संविधान पीठ ने ने फैसला सुनाते हुए परस्पर  सहमति से स्थापित समलैंगिक यौन संबंधो को अपराध के दायरे में रखने वाले धारा 377 के हिस्से को तर्कहीन, मनमाना और बचाव नहीं करने योग्य करार दिया। 
      धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त करते हुए पीठ ने कहा, इससे संविधान में प्रदत समता के अधिकार और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने कहा कि जहां तक एकांत में परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन कृत्य का सम्बन्ध है, तो यह न तो बच्चों या महिलाओं के लिए नुकसंदेह है और न ही समाज के लिए संक्रामक है।

      समलैंगिकता बीमारी नहीं : पीठ ने फैसले में कहा कि समलैंगिक यौन रुझान जैविक और मस्तिष्क तंत्रीय है, जो प्राकृतिक है तथा इस पर लोगो का कोई नियंत्रण नहीं है. इस आधार पर यह प्रावधान संविधान के अनुछेद 14 में प्रदत समता के अधिकारों का उल्लंघन है। धारा 377 एलजीबीटी के सदस्य को परेशान करने का एक हथियार था, जिसके कारन उनसे भेद-भाव होता है, जबकि यह समुदाय संविधान में दिए गए सभी अधिकारों का हक़दार है।
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क्या है धरा 377 
इसमें कहा गया कि जो कोई भी स्वेछा से प्राकृतिक वयवस्था के विपरीत किसी पुरुष,महिला या पशु के यौन सम्बन्ध स्थापित करता है, तो वह क़ानूनी रूप से अपराध है और दंड का भागी है।

क्या था सजा का प्रावधान  
समलैंगिक सम्बन्ध अथवा प्राकृतिक यौन सम्बन्ध बनाने का दोषी साबित होने पर व्यक्ति को उम्र कैद या फिर निश्चित अवधि के लिए कैद की जा सकती थी। जिसके साथ जुर्माने का प्रावधान था।

> इतिहास को एलजीबीटी समुदाय से माफी मांगनी चाहिए, जिसने इ स समुदाय को सैकड़ो वर्ष डर के साये में रहने के लिए मजबूर किया। लोग जैसे है उन्हें वैसे ही स्वीकार करने की मानसिकता हो।   - सुप्रीमकोर्ट 

विवाह की अनुमति नहीं 
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले के बाद धारा 377 के तहत दंडित व्यक्ति मामले को फिर से नहीं खुलवा सकेंगे लेकिन लंबित मामलो पर इस फैसला का पूरा असर होगा। यह फैसला समलैंगिकों विवाह की अनुमति नहीं देता और नहीं इसका असर उत्तराधिकारी और गोद लेने के कानून पर होगा।

अपना ही पैसला बदला 
यह पैसला देकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने पांच वर्ष पुराने फैसले को पलट दिया और कहा कि कानून की व्याख्या बदलते समय की जरूरतों के हिसाब से करनी चाहिए। पीठ ने चार अलग लेकिन सहमति के फैसले सुनाये। कोर्ट ने 2013 में सुरेश कौशल प्रकरण में दी गई अपनी ही व्यवस्था निरस्त कर दी। 

कब-कब क्या हुआ 
1861 : ब्रिटिश सरकार ने धारा 377 लागू की। 
2001 : नाज फॉउंडेशन ने हाई कोर्ट में याचिका दे समलैंगिक सम्बन्धो की वैधता की मांग की 
2012 : सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटा, कहा फैसला क़ानूनी आधार पर नहीं 
2018 : सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई की, जुलाई में फैसला सुरक्षित किया 

120 देशो में मान्यता तो 70 में अपराध 
दुनिया के करीब 120 देशो में पहले से समलैंगिक सम्बन्धो का क़ानूनी मान्यता प्राप्त है। अब भारत भी उनमे शामिल हो गया है। हालांकि भारत में इस सवाल ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में ही फैसला सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट भी कर दिया था कि वह सिर्फ धारा 377 की संवैधनिकता को ही जांचेगी।


डेनमार्क से शुरुआत 
1989 से डेनमार्क में समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता देने का सीलसिला शुरू हुआ। डेनमार्क पहला देश था जिसमे समलैंगिक जोड़ो को विवाहित दम्पति के बराबर का दर्ज दिया। फिर यूरोप के कई अन्य देशो समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने की मांग उठी। 

 साल साल बाद 
1996 : में नार्वे, स्वीडन और आइसलैंड ने भी समलैंगिक सम्बन्धो को वैध मान लिया। फिनलैंड ने भी इस बारे में कानून बनाया। 
2001: में नीदरलैंड ने समलैंगिक जोड़ो की शादी को पूर्ण विवाह का अधिकार दिया गया। 
2003 : बेल्जियम और 2004 में न्यूजीलैंड ने समलैंगिक शादी को मान्यता दी। 
2005 : स्पेन और कनाडा ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी। 
2005 : दक्षिण अफ्रीका ने इन सम्बन्धो को सही माना। 
2007 : नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने उन कानूनों को ख़त्म करने का आदेश दिया, जो समलैंगिक लोगो के खिलाफ भेद-भाव करते थे।  

13 देशो में मिलती है सजा-ए मौत
दुनिया के करीब 13 देशो में समलैंगिक संबधो को बहुत घृणित अपराध मना जाता है। मसलन सूडान, ईरान, सऊदीअरब और यमन में समलैंगिक सम्बन्धो की पुष्टि होने पर आरोपी व्यक्ति को फांसी की सजा दी जाती है। पास्किस्तान अफगानिस्तान और क़तर में भी फांसी देने का प्रवधान है।

 आई.पी.सी की धारा कहती है 
अप्राकृतिक अपराध:" जो कोई भी स्वेक्षा से किसी भी आदमी,और जानवर के साथ प्राकृति के आदेश के खिलाफ शारीरिक सम्भोग करेगा, आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा, या उल्लेख की अवधि तक कारावास में रखा जायेगा जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जो जुर्माना भरने के उत्तरदाई होगा। " 

व्याख्या : इस धारा में प्रवेश को शारीरिक समागम बनाने के लिए आवश्यक अपराध मानते हुए व्याख्या की गई है। 
इस प्रकार ये धारा किसी भी यौन गतिविधि को जो प्रकृति के खिलाफ हो आपराधिक अपराध का बनाती है। इस प्रकार के स्वैक्षिक कार्य भी दण्डनीय है। इस प्रकार इस तरह की गतिविधी के लिए एक लिंग के दो व्यक्तिओ के बिच सहमति सारहीन है। इस लिए धारा 377 समलैंगिक गतिविधि का अपराधीकरण करती है और इसे उच्च दंड जैसे आजीवन कारावास के लिए दंडनीय बनाती है। 


भारत दंड संहिता का ये प्रावधान हाल के दिनों में एक प्रमुख विवादस्पद बिंदु और बहस का बिषय बन गया है। एल.जी.बी.टी. समुदाय के लोग इस बात की मांग कर रहे है की यदि दो सम्मान लिंग वाले व्यक्ति एक दूसरे  साथ आपसी सहमति से सम्बद्ध बनाते है तो इसे अपराध की श्रेणी में न रखा जाये।

लेकिन जब उनकी याचिका पर हमारी विधायिकाओ द्वारा प्रतिक्रिया व्यस्त नहीं की गई तो वो एक जनहित याचिका के माध्यम से अपनी शिकायत के लिए सिर्फ उपयुक्त समाधान के लिए अदालत में गये। ये जनहित याचिका को दिल्ली उच्च न्यालय में एक गैर सरकारी संगठनो अर्थात नाज फॉउंडेशन की ओर से दायर कि गयी थी 

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